आज मैं रो भी नहीं सकता !

दोस्तो,
हर पल किसी का साथ महसूस करना कितना प्यारा और कितना निराला अहसास है। आजाद होते हुए भी हम साथ होते हैं और साथ रहते हुए भी आजाद-यही प्यार करने वालों के जोश और शक्ति का राज होता है। लेकिन, यह अनोखी अनुभूति तब एक ऐसी कड़वाहट में बदलने लगती है जब हम दूसरे के हर लम्हे को अपने लिए कैद कर लेना चाहते हैं।
दोस्तो, प्यार में साथी पर कब्जा नहीं किया जाता बल्कि उसे मुक्त किया जाता है। आप जिसे प्यार करते हैं उसे आजादी का अहसास कराना बहुत बड़ा  प्यार है।
दोस्तो, जब हम किसी से प्यार करते हैं तो उसकी छोटी-बड़ी सभी बातों का खयाल रखते हैं। उसका भला और खुशी चाहने के लिए उसके साथ घटने वाली घटनाओं पर नजर भी रखते हैं। जब हमें महसूस होता है कि कोई काम, व्यक्ति या रिश्ता हमारे साथी के लिए उचित नहीं है तो हम अधिकार जताकर उसे उससे दूर रहने की सलाह देते हैं। इस प्रकार का हक जताना दोनों को ही अच्छा लगता है। देखते ही देखते यह टोका-टोकी आदत में शुमार होने लगती है।
  शुरुआत में हर फैसले के लिए साथी का आपकी ओर मुँह ताकना आपको महत्वपूर्ण होने का अहसास दिलाता है पर धीरे-धीरे यह बोझ बनता जाता है। दरअसल, आपने जिस व्यक्ति को उसके जिन गुणों पर रीझ कर उससे प्रेम किया, वह व्यक्ति अब वैसा रहा ही नहीं।      
 शुरू-शुरू में शायद सामने वाले को उतना अटपटा न लगे पर धीरे-धीरे अधिकार जताने का शिकंजा इतना कसता जाता है कि प्यार की मौत होने लगती है। ज्यादातर मामलों में रिश्ते तो चलते रहते हैं पर प्यार बहुत पीछे छूट चुका होता है।
दोस्तो, किसी भी वयस्क रिश्ते में एकाधिकार  जताना समझदारी की बात नहीं है। प्यार का मतलब होता है एक दूसरे के व्यक्तित्व को मजबूती देना लेकिन जब हम अपने साथी के अच्छे-बुरे का फैसला खुद लेने लगते हैं तो हम सामने वाले के आत्मविश्वास को तोड़ने लगते हैं। इससे सामने वाले की निर्णय लेने की क्षमता घटने लगती है और उसका व्यक्तित्व कमजोर पड़ने लगता है। उसकी निर्भरता फैसला लेने वाले पर रोज-ब-रोज बढ़ती जाती है।
शुरुआत में हर फैसले के लिए साथी का आपकी ओर मुँह ताकना आपको महत्वपूर्ण होने का अहसास दिलाता है पर धीरे-धीरे यह बोझ बनता जाता है। दरअसल, आपने जिस व्यक्ति को उसके जिन गुणों पर रीझ कर उससे प्रेम किया, वह व्यक्ति अब वैसा रहा ही नहीं। आपको उसकी इन आदतों से कोफ्त होने लगती है। आपने उस व्यक्ति से प्यार किया था जिसमें आपको चुनने की, , रिश्ते को आगे बढ़ाने की शक्ति थी पर अधिकार जता-जता कर आज उसकी वह सारी शक्ति कहीं गुम हो गई है।
 बराबरी के रिश्ते की तुलना दुनिया में किसी संबंध से नहीं हो सकती। बेजा अधिकार जताना जितना गलत है, उतना ही अधिकार जताने की छूट देना भी नासमझी है। प्यार में बिना हावी हुए एक-दूसरे के आत्मविश्वास को बढ़ाना ही दोनों साथियों का मकसद होना चाहिए। ..............................................सुरेन्द्र कुमार दिल्ली झारखण्ड