Tuesday 21 December 2010

तुम्हे कैसे भुला दू ?



तुम्हे भूलना मजबूरी हैं मेरी

जीतकर भी हारना कमजोरी हैं मेरी 

सोचता हु क्या नाम दू इसे 

मरने से भी बत्तर, ये जो ज़िन्दगी है मेरी !

रिश्ते और नाते अब सब सपने से लगते है

बेगानो से न जाने अब आप अपने क्यों लगते है

डर है कही अपने आप को न खो दू 

 अपने भी अब अजनबी से लगते है