Saturday 12 August 2017

बिरसा मुंडा जीवनी

पूरा नाम
बिरसा मुंडा
जन्म
जन्म भूमि
मृत्यु
9 जून1900 ई.
मृत्यु स्थान
राँची जेल
अभिभावक
सुगना मुंडा
नागरिकता
भारतीय
प्रसिद्धि
क्रांतिकारी
विशेष योगदान
बिरसा मुंडा ने अनुयायियों को संगठित करके दो दल बनाए। एक दल मुंडा धर्म का प्रचार करता था और दूसरा राजनीतिक कार्य।
अन्य जानकारी
कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाते हैं।
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बिरसा मुंडा (जन्म- 15 नवम्बर1875 ई., राँचीझारखण्ड; मृत्यु- 9 जून1900 ई., राँची जेल) एक आदिवासी नेता और लोकनायक थे। ये मुंडा जाति से सम्बन्धित थे। वर्तमान भारत में रांची और सिंहभूमि के आदिवासी बिरसा मुंडा को अब 'बिरसा भगवान' कहकर याद करते हैं। मुंडा आदिवासियों को अंग्रेज़ों के दमन के विरुद्ध खड़ा करके बिरसा मुंडा ने यह सम्मान अर्जित किया था। 19वीं सदी में बिरसा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक मुख्य कड़ी साबित हुए थे।
जन्म तथा शिक्षा
बिरसा मुंडा का जन्म 1875 ई. में झारखण्ड राज्य के राँची में हुआ था। उनके पिता, चाचा, ताऊ सभी ने ईसाई धर्मस्वीकार कर लिया था। बिरसा के पिता 'सुगना मुंडा' जर्मन धर्म प्रचारकों के सहयोगी थे। बिरसा का बचपन अपने घर में, ननिहाल में और मौसी की ससुराल में बकरियों को चराते हुए बीता। बाद में उन्होंने कुछ दिन तक 'चाईबासा' के जर्मन मिशन स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। परन्तु स्कूलों में उनकी आदिवासी संस्कृति का जो उपहास किया जाता था, वह बिरसा को सहन नहीं हुआ। इस पर उन्होंने भी पादरियों का और उनके धर्म का भी मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। फिर क्या था। ईसाई धर्म प्रचारकों ने उन्हें स्कूल से निकाल दिया।
लोगों का विश्वास
इसके बाद बिरसा के जीवन में एक नया मोड़ आया। उनका स्वामी आनन्द पाण्डे से सम्पर्क हो गया और उन्हें हिन्दू धर्मतथा महाभारत के पात्रों का परिचय मिला। यह कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाते हैं।
प्रभाव में वृद्धि
जन-सामान्य का बिरसा में काफ़ी दृढ़ विश्वास हो चुका था, इससे बिरसा को अपने प्रभाव में वृद्धि करने में मदद मिली। लोग उनकी बातें सुनने के लिए बड़ी संख्या में एकत्र होने लगे। बिरसा ने पुराने अंधविश्वासों का खंडन किया। लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी। उनकी बातों का प्रभाव यह पड़ा कि ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी और जो मुंडा ईसाई बन गये थे, वे फिर से अपने पुराने धर्म में लौटने लगे।
गिरफ़्तारी
बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण करने वाले ज़मींदारों के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा भी लोगों को दी। यह देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लोगों की भीड़ जमा करने से रोका। बिरसा का कहना था कि मैं तो अपनी जाति को अपना धर्म सिखा रहा हूँ। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार करने का प्रयत्न किया, लेकिन गांव वालों ने उन्हें छुड़ा लिया। शीघ्र ही वे फिर गिरफ़्तार करके दो वर्ष के लिए हज़ारीबाग़ जेल में डाल दिये गये। बाद में उन्हें इस चेतावनी के साथ छोड़ा गया कि वे कोई प्रचार नहीं करेंगे।
संगठन का निर्माण
परन्तु बिरसा कहाँ मानने वाले थे। छूटने के बाद उन्होंने अपने अनुयायियों के दो दल बनाए। एक दल मुंडा धर्म का प्रचार करने लगा और दूसरा राजनीतिक कार्य करने लगा। नए युवक भी भर्ती किये गए। इस पर सरकार ने फिर उनकी गिरफ़्तारी का वारंट निकाला, किन्तु बिरसा मुंडा पकड़ में नहीं आये। इस बार का आन्दोलन बलपूर्वक सत्ता पर अधिकार के उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ा। यूरोपीय अधिकारियों और पादरियों को हटाकर उनके स्थान पर बिरसा के नेतृत्व में नये राज्य की स्थापना का निश्चय किया गया।
शहादत
24 दिसम्बर1899 को यह आन्दोलन आरम्भ हुआ। तीरों से पुलिस थानों पर आक्रमण करके उनमें आग लगा दी गई। सेना से भी सीधी मुठभेड़ हुई, किन्तु तीर कमान गोलियों का सामना नहीं कर पाये। बिरसा मुंडा के साथी बड़ी संख्या में मारे गए। उनकी जाति के ही दो व्यक्तियों ने धन के लालच में बिरसा मुंडा को गिरफ़्तार करा दिया। 9 जून1900 ई. को जेल में उनकी मृत्यु हो गई। शायद उन्हें विष दे दिया गया था। लेकिन लोक गीतों और जातीय साहित्य में बिरसा मुंडा आज भी जीवित हैं।

Friday 17 February 2017

पिता के आंखें भर आएंगी

एक पिता का प्यार अपनी बेटी के लिए:-   
मेरा बेटा तब तक मेरा है जब तक उसकी शादी न हो जाती और मेरी बेटी तब तक मेरी है जब तक मेरी मौत न हो जाती। पिता के लिए उसकी बेटी जितनी खास,जितनी स्पेशल होती है,उतना ही बेटी के लिए पिता भी खास होते हैं। दोनों के बीच की प्यार का कोई सीमा नहीं है। बेटी के पैदा होने से लेकर शादी करके उसकी विदाई करने तक एक पिता जितनी यादें बेटी के साथ बनाता है, उस हर एक लम्हे को याद करके वह आंसू भी बहाता है।इसीलिए  किसी ने कहा है की  हर  व्यक्ति  के  100  भाग्य  होते  है । पर  उन  100  भाग्यों  में  से  जब  1  भाग्य  अच्छा  होता  है  तब  उन  के  घर  पर  'लड़के'  का  जन्म  होता  है और जब  100  के  100  भाग्य  अच्छे  होते  तब  उन  के  घर  पर  'लड़की'  का  जन्म  होता  है ।इसीलिए  ऐसा  कहा  जाता  है  की, लड़का  तो  'भाग्य'  से  होता  है लेकिन  लड़की  'सौभाग्य'  से  होती  है । बेटी है तो कल है पराया धन होकर भी कभी पराई नही होती। शायद इसीलिए किसी बाप से हंसकर बेटी की, विदाई नही होती।"

***"हर बेटी के भाग्य में पिता होता है,पर हर पिता के भाग्य में, बेटी नही होती"***

Friday 13 January 2017

जीवन का एक सच

इन्सान अपनी ईच्छाओं का त्याग करता है, और पुरी जिन्दगी नौकरी, ब्यपार और धन कमाने में बिता देता है। 60 वर्ष की ऊम्र के बाद, जब वो रिटायर्ड {Retired} होता है तो उसे उसका फन्ड {Funds} मिलता है। या बैंक  बैलेंस  होता हैं  तब तक जीवन  बदल चुकी होती है, परिवार को चलाने वाले बच्चे जाते हैं क्या इन बच्चों को इस बात का अन्दाजा लग पायेगा की इस फन्डया बैंक बैलेंस के लियेकितनी इच्छायें अधूरी रही होगी हैं?, कितनी तकलीफें झेली होंगी ?,कितनें सपनें अधूरे रहे होंगे?  अपनी सारी जिन्दगी घर से बाहर रहकर पैसे कमाने में लगा दी और जब वह कुछ करने लायक नहीं रहे तो अपने घर वापस जाते हैं। ऐसे पैसे किस काम के जिसे पाने के लिये पूरी जिन्दगी लगाई जाय और उसका इस्तेमाल खुद कर सके। “इस धरती पर कोई ऐसा आमीर अभी तक पैदा नहीं हुआ जो बीते हुए समय को खरीद सके।"हमेशा सकारात्मक सोच रखें और अपनी जीवन को अपनी तरह से अपने अंदाज में जियें। ------ये सब मैं ने कही पढ़ा था   

ये मेरा सोच है----"आपके के लिए कोई क्या सोचता हैं ये कोई मायने नही रखता हैं 
                           लेकिन आप आपने बारे में क्या सोचते ये मायने रखता है"