
एक बेहद कड़वा सच जिसे कोई मानना नही चाहता ! शायद हमें अपनी निगाह में ख़ुद गिर जाने का डर, इसे याद न रखने को विवश करता है !
17-18 साल की होते होते, माँ बाप सोचने लगते हैं कि १-२ साल में गुडिया के विवाह के बाद यह खर्चा तो कम हो ही जाएगा ! उस गुडिया के कमरे पर, कब्ज़ा करने की कईयों की इच्छा, ख़ुद माँ का यह कहना कि गुडिया के शादी के बाद, यह कमरा खाली हो जाएगा, इसमे बेटा रह लेगा, किताबों को बाँध के टांड पर रख दो और स्टडी टेबल अपने भाई के बेटे को देने पर, इस कमरे में जगह काफी निकल आयेगी !
यह वही बेटी थी, जो पापा की हर परेशानी की चिंता रखती और हर चीज समय से याद दिलाती थी, उसके पापा को कलर मैचिंग का कभी ध्यान नही रहता, इस पर हमेशा परेशान रहने वाली लडकी, सिर्फ़ 18 साल की कच्ची उम्र में, सबको इन परेशानियों से मुक्त कर गयी !
यह वही बहन थी जो पूरे हक़ और प्यार के साथ, खिलखिला खिलखिला कर, अपने भाई के जन्मदिन की तैयारी पापा, माँ से लड़ लड़ कर, महीनों पहले से करती थी ! रात को ठीक 12 बजे पूरे घर की लाइटें जला कर हैप्पी बर्थडे की धुन बजाने वाली लडकी, एक दिन यह सारी उछल कूद छोड़कर, गंभीरता का दुपट्टा ओढाकर विदा कर दी गयी .....और साथ में एक शिक्षा भी कि अब बचपना नहीं, हर काम ढंग से करना ऐसा कुछ न करना जिसमे तुम्हारे घर बदनामी हो !
कौन सा घर है मेरा ... ?? नया घर जहाँ हर कोई नया है, जहाँ उसे कोई नही जानता या वह घर, जहाँ जन्म लिया और 17-18 साल बाद विदा कर दी गयी ! जिस घर से विदाई के बाद, वहां एक कील ठोकने का अधिकार भी उसे अपना नही लगता ! और जिस घर को मेरा घर.. मेरा घर.. कहते जबान नही थकती थी उस घर से अब कोई बुलावा भी नही आता ! क्या मेरी याद किसी को नही आती... ऐसा कैसे हो सकता है ? फिर मेरा कौन है ... उस बेटी के पास रह जाती हैं दर्द भरी यादें ... और अब वही बेटी, अपनी डबडबाई {आंसू भरी } ऑंखें छिपाती हुई, सोचती रहे ...
किस घर को अपना बोलूं ?
मां किस दर { घर } को अपना मानूं
भाग्यविधाता ने क्यों मुझको जन्म दिया है, नारी का !
बड़े दिनों के बाद आज भैया की याद सताती है
पता नहीं क्यों सावन में पापा की यादें आती है !
शादी के पहले दूसरे साल तक बेटी के घर त्योहारों पर कुछ भेंट आदि लेकर जाने के बाद, उस बच्ची की ममता और तड़प को भूल कर, अपनी अपनी समस्याओं को सुलझाने में लग जाते हैं ! कोई याद नही रखता अपने घर से विदा की हुई बच्ची को ! धीरे धीरे इसी बेटी को अपने ही घर में, मेहमान का दर्जा देने का प्रयत्न किया जाता है, और ड्राइंग रूम में बिठाकर चाय दी जाती है !
तुम सब भले भुला दो लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूं ?
तुम सब भूल गए भइया ! पर मैं, वे दिन कैसे भूलूं ?
बड़े दिनों के बाद आज , उस घर की यादें आती हैं !
पता नहीं क्यों आज मुझे मां तेरी यादें आती हैं !
हम अपने देश की संस्कारों की बाते करते नही थकते है हम अपने घर के सबसे सुंदर और कमज़ोर धागे को टूटने से बचाने के लिए , उसकी सुरक्षा के लिए कोई उपाय नही करते ! आज आवश्यकता है कि बेटे से पहले बेटी के लिए वह सब दिया जाए जिसकी सबसे बड़ी हकदार बेटी है !